आज हम जानेंगे की वालीदैन को चाहिए के अपने बच्चो की तरबियत केसे करे।
![]() |
बच्चों की तरबियत आज की मेरी पोस्ट है बच्चों की तरबियत के हवाले से, अपने बच्चो की तरबियत करनेके हवाले से। वालीदैन को चाहिए के अपनी औलाद के हुकूक यानी की तरबियत (परवरिस) को सही तरीके से करे। वालीदैन को चाहिए के औलाद के हुकूक का खयाल रखें, इन्हे मॉडर्न बनाने के बजाए सुन्नतों पर चलने वाला चलता फिरता नमूना बनाएं, इनके अखलाक संवारें, बुरी सोहबत से दूर रखें, सुन्नतों भरे मदनी माहोल से वाबस्ता करें। फिल्मों ड्रामों गानों बाजों और बुरे रश्मों रिवाजों से भरपूर और यादें खुदा व मुस्तफा से दूर करने वाले फंक्सनों से बचाएं। आज कल सायद मां बाप औलाद की तरबियत यही समझते हैं की इनको दुनियावी तालीम मिल जाए, हुनर और माल कमाना आ जाए। ये तालीम भी जरूरी है दुनियावी लिहाज से पर सिर्फ यही सीखा कर दीनी तालीम से मेहरूम ना रखा जाए। एक बात पर आज सबसे ज्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है की आज कल वालीदैन को अपने लख्ते जिगर के लिबास और बदन पर लगे हुवे मैल कुचैल और गंदगी से बचने का जेहन पूरा बना होता हैं मगर अपने बच्चे के दिलों दिमाग और आमाल की पाकिजगी का कोई खयाल नहीं होता। अल्लाह अजवजल्लाह के महबूब और हमारे प्यारे नबी स. अ. व. का फरमान ए निशान है: " अगर कोई शख्स अपनी औलाद को अच्छी तरबियत (अदब) सिखाए तो वोह उस के लिए एक साअ जितना सदका करने से अफजल हैं।" अपनी औलाद को बेहतरिन तरबियत देना हर मां बाप पर फर्ज हैं। क्योंकि अगर बच्चे की तरबियत सही तरीके से नहीं होती तो सिर्फ दीनी ही नही बल्कि दुनियावी नुक्सान भी हमे देखने मिलते हैं। |
अपने बच्चे के दिल में मुहब्बत पैदा करें।
जिस भी इंसान के दिल में मुहब्बत होगी उसका दिल रहम करने वाला होगा। वो इंसान कभी किसी को तकलीफ न देगा। इसलिए हमें चाहिए की अपने बच्चों के दिलों में मुहब्बत पैदा करें। उन्हें ख़ुश अखलाक़ बनाये। और खुश अखलाक बनाने के लिए उन्हें अक्सर गले लगायें, माथे पे बोसा ले( चूमना )। ताकि इस तरह धीरे धीरे उनके दिलों में भी आपके लिए मुहब्बत पैदा हो जाएगी।और जब इस तरह बच्चों की तरबियत में मां बाप के लिए मुहब्बत होगी तो बुढ़ापा भी अच्छा गुज़रेगा।
मां बाप का अपने बच्चे पर गुस्सा करना।
बच्चों से ख़ूब मोहब्बत करें, उनसे प्यार से पेश आएं लेकिन फिर भी उनसे इतनी दूरी बना कर रखें कि वो आपकी मोहब्बत का गलत फायदा ना उठा सके। हर चीज़ की एक सीमा होती है इसलिए इतना भी लाड़-प्यार ना करने लग जाए कि वह हर बात को नजरअंदाज़ करने लगे और उसका गलत फायदा उठाने लगे । मगर इतना सख्ती और गुस्सा भी नहीं करनी चाहिए की बच्चे दहशत में जीने लगे।
ज़्यादा सख्ती भी गलत बात है इससे या तो बच्चों में डर पैदा हो जाएगा या फिर आप को नजरअंदाज़ करना शुरू कर देंगे। इसलिए बच्चों की तरबियत में सख्ती भी इस हद तक दिखाएं कि कोई गलती करने पर आपकी डांट और मार का डर भी बच्चों में रहना चाहिए ।
अपने बच्चों के अच्छे दोस्त बनें।
बच्चों की तरबियत और भी बेहतर करने के लिए उनसे दोस्ती का हाथ बढाए । उनको इस बात का यकीन दिलाए की आप उनकी हर परेशानी को चुटकियों में हल कर देंगे। जब भी वो कुछ कहें उन्हें गौर से सुनें। किसी परेशानी या गलती में बच्चों की गलती हो तो तब भी सीधे उन्हें तब ही ना डांटे क्युकी फिर दुबारा वो अपनी गलती को कभी नहीं बताएँगे आपको, आपकी डांट के डर की वजह से। इसलिए पहले बच्चों की बात सुन लिया करे एक दोस्त की तरह और फिर मौका मिले तब सबक सिखाते हुवे उन्हें अपनी उस गलती को दुबारा ना करे इस बात को सिखाए।
अपने बच्चों की गलतियों पर उन्हें सज़ा देना।
गलती होने पर कोशिश करें हाथ ना उठाए उनपे। बच्चों की तरबियत के लिए ये बहुत ज़रूरी बात है। बहुत हद तक कोशिश करें कि उनको गलती सुधारने का मौका दिया जाए। उनको उनकी गलती बताई जाए जिससे कि उन्हें भी सही गलत का मालूम हो सके। जब हम पहली कोई छोटी मोटी गलती होने पर उनको मार देंगे, तो दोबारा वह बड़ी गलती करने पर भी कभी नहीं चाहेंगे की उन्हें मार पड़े। इसलिए वो तभी से गलती को छिपाना सिख जायेंगे और ऐसी छोटी छोटी गलतियां फिर बड़े गुनाह बन ने में देरी भी नही करती हैं। इसलिए ज्यादा सख्ती से पेश न आए।
ये भी पढ़े : रिस्तेदारों के एहतराम
मगर हां अगर कोई बड़ी गलती हो तो उस पर ज़रूर सख्ती से एक्शन लिया जाना चाहिए जिससे कि अगली बार ऐसी गलती करने से पहले ही आप के गुस्से और मार को याद कर ले और गलती करने से रुक जाए। जब कभी भी किसी बड़ी गलती पर बच्चों को मारना हो तो दिल में इस बात को हमेशा याद रखें की बच्चों को सिखाना है ना कि अपने गुस्से की भड़ास निकालनी है।
अपने बच्चों को नरम मिज़ाज बनाए।
बच्चों के सामने हमेशा दिल की नरमी से ऐसा काम करें की उनका दिल भी वैसा हो जाए। जैसे की गरीबों को सदका और खैरात देना निदामत ( Respect ) के साथ और उनको इस तरह मदद किए हुए पैसों का फायदा बताएं। जैसे कि दिल को सुकून मिलता है, मौत के बाद जन्नत में भी इस नेक कामों से फायदा मिलता हैं, और भी सारी बातें बताए। कोशिश करें की गरीबों को सदका और खैरात बच्चों के हाथ से ही दिलवाए, इससे उनका दिल कभी सख्त नहीं होगा, और बचपन से सखावत का जज्बा पैदा होगा और बड़े होने के बाद भी जवानी की गर्मजोशी में जो घमंड आ जाता है, उस वक्त वो हर किसीके साथ रेहम दिलि से पेश आने वाले बन जायेंगे।
अपने बच्चो की अच्छी इस्लाह करना।
बच्चों की तरबियत के लिए उनके कभी भी भूत वगैरह से ना डराए। उन्हें हमेशा इस बात का एहसास दिलाये की अल्लाह हमें देख रहा है इसलिए जब कभी कोई डराने वाला नहीं रहेगा तब भी उनके अन्दर ये डर रहेगा की अल्लाह हमें देख रहा है। वह गुनाहों की तरफ नहीं जाएंगे , क्योंकि भूत का डर सिर्फ रात में होगा और अल्लाह का डर हमेशा रहेगा।
अपने बच्चों की तरबियत में मां किरदार।
जैसा कि कहा जाता है कि बच्चों की तरबियत में मां का किरदार अहम होता है। मां का प्रभाव बच्चों पर बहुत ज्यादा पड़ता है। बच्चे वही चीजें अक्सर करते हैं जो मां को करते हुए देखते हैं। मां से ही बच्चे दुनिया की अच्छी और बुरी चीजों के बारे में कुछ सीखते हैं। बच्चे मां से ही ये जान पाते हैं कि क्या चीज सही है और क्या चीज गलत है।
बच्चे एक मिट्टी के घड़े की तरह होते हैं जिन्हें जैसे चाहे वैसे ढाल सकते हैं अगर बच्चा अपनी मां को अच्छी चीजें करते हुए देखता है तो वोह उसे सीख लेता है, और अगर वोह अपनी मां को कुछ बुरा करते हुए देखता है तो वो भी बहुत जल्दी सीखता है। बच्चे बहुत ही नाजुक होते हैं इसलिए मां का किरदार ऐसा होना चाहिए कि वह अपने बच्चों को बहुत ही प्यार से हर चीज के बारे में बताएं, बच्चों पर सख्ती करने से वह बहुत जिद्दी हो जाते है, इसलिए उन्हें अच्छी तरबियत दे सही तरीके से। मां को चाहिए के बाप के बारे में बच्चे के सामने एहतराम किया करे ताकि बच्चे को बाप की एहमियत और उसके रूतबे का खयाल रहे और बच्चा बाप का अदब और एहतराम करे।
ये भी पढ़े : ईमान ताजा करने वाली बातें
बच्चों के पालन पोषण में और बच्चों की तरबियत में मां का किरदार पहले शिक्षक या उस्ताद की तरह होता है। बच्चे जो मां को करते हुए देखते हैं वही सीखते हैं। इसलिए मां को चाहिए कि अगर किसी बात पर बाप अपने बच्चों को डांटता है तो वो अपने बच्चों को सपोर्ट ना करें। अगर वो ऐसा करती है तो बच्चों पर इसका बुरा असर पड़ता है।
बच्चों की तरबियत में बाप के किरदार की एहमियत।
जैसा कि कहा जाता है कि बच्चों की तरबियत में मां का महत्व बहुत महत्वपूर्ण होता है उसी तरह बच्चों की तरबियत में एक बाप की भी बहुत एहमियत होती है। अक्सर देखा जाता है कि बाप का रवैया बच्चों के साथ बहुत सख्त होता है। वो बात बात पर बच्चों को डांट दिया करते हैं ऐसा नहीं करना चाहिए।
बच्चे बहुत ही कोमल होते हैं, बिल्कुल एक फूल के जैसे। जरा सी सख्ती पर ही टूट कर बिखर सकते हैं। अगर मां अपने बच्चों को कुछ सिखाती है या बताती है तो बाप को चाहिए कि वो अपने बच्चे को ये शिक्षा दे कि बेटा जो तुम्हारी मां कह रही है उसे मानो। ताकि मां की एहमियत बच्चे के मन में बडकर ही रहें। और बच्चा अपने मां से अच्छा व्यवहार करना सीखे।
बहुत से बाप को देखा जाता है कि वह अपने बच्चों को गलत बात पर भी नहीं रोकते जिससे बच्चे बिगड़ जाते हैं, और उनके मन में किसी बात का डर नहीं रहता जिससे उनका भविष्य खराब हो सकता है। इसलिए बाप को चाहिए की सही वक्त पर प्यार और सही वक्त पर डांट दोनो का बैलेंस बनाए रखें।
अपने बच्चे की मोबाइल से दूरी बनाये रखे।
आज कल के माहोल में आम तौर पर देखा गया की बच्चे रोने लगते हैं तो घर वाले मोबाइल में विडियो दिखा कर बच्चे को चुप करा देते हैं। उस वक़्त के लिए तो अच्छा है की बच्चा रोना बंद कर देता हैं। मगर यही चीज़ उसके चिड़चिड़ा होने की वजह भी बन जाती है। क्युकी फिर थोड़ी देर अगर मोबाइल ना मिला तो फिर से रोना शुरू कर देंगा।
जैसे की हम जब भी ऑनलाइन विडियो देखते हैं तो चलते चलते वीडियो अगर रुक जाता है तो खुद ही गुस्सा आ जाता है बिलकुल वैसे ही बच्चे धीरे धीरे गुस्सा करके चिड़चिड़े हो जाते हैं । जो की बच्चो की तरबियत में बहुत बड़ा नुक्सान होगा . इसलिए सब बातों का ध्यान रखना होगा।
ये भी पढ़े : दिल को छु जाने वाली बातें
आखिर में सबसे जरूरी बात
बच्चों की तरबियत में उन्हें इंशा अल्लाह , माशा अल्लाह , सुबहान अल्लाह जैसे अलफ़ाज़ सिखाएं ताकि ये चीज़े उनको दीन और दुनिया दोनों जगह फायदा पहोंचा सके।
जजाकल्लाह
Very nice..very useful and informative content
ReplyDeleteSundarta very informative content. Your content helped me a lot. Sundarta Post
ReplyDelete